सकट चौथ क्या है – इसका महत्व तथा पूजा विधि की पूरी जानकारी

दोस्तो, भारत एक ऐसा इकलौता देश है जहां पर सभी संप्रदाय और समुदाय के लोग एक साथ मिलकर रहते हैं। वह सभी अपने शास्त्रों के अनुसार पूजा पद्धति पर विश्वास करते हैं और उन्हें मनाते हैं। भारत में भी बहुत से ऐसे व्रत होते हैं जिन्हें किया जाता है। उनकी अपनी एक मान्यता होती है। जैसे कि करवा चौथ का व्रत, लक्ष्मी पूजा का व्रत, गणेश चतुर्थी का व्रत, छठ पूजा का व्रत इत्यादि इन सब व्रतों की अपना एक खास महत्व और खास मान्यता होती है।

वैसे ही एक ऐसा व्रत है जिसे सकट चौथ के व्रत से जाना जाता है। तो आज हम आपको सकट चौथ क्या है, सकट चौथ के महत्व क्या है, सकट चौथ पूजा कैसे की जाती है इत्यादि की जानकारी संक्षिप्त रूप से इस आर्टिकल के माध्यम से देंगे। आप इस आर्टिकल को अंत तक जरूर पढ़ें और सकट चौथ से संबंधित जानकारी को प्राप्त करें।

सकट चौथ क्या है - इसका महत्व तथा पूजा विधि की पूरी जानकारी

सकट चौथ क्या है (Sakat Chauth In Hindi)

यह एक व्रत है, भारत में सनातन धर्म के अनुसार सकट चौथ व्रत संतान की प्राप्ति और संतान की लंबी आयु के लिए रखा जाता है। इस व्रत को माताएं संतान प्राप्ति के लिए रखती है और इस दिन माताएं भगवान श्री गणेश जी की विधि पूर्वक आराधना करती है। इस व्रत में तिलकुट का प्रसाद बनाकर भगवान गणेश जी को भोग लगाया जाता है।

भगवान गणेश जी को तिलकुट बहुत ही पसंद है। इस दिन भगवान चंद्र देव और भगवान गणेश जी की पूजा की जाती है। हिंदू पंचांग के अनुसार एक साल में 24 चतुर्थी होती है। एक महीने में दो बार चतुर्थी आती है। उनमें से एक चतुर्थी कृष्ण पक्ष में आती है और दूसरी शुक्ल पक्ष में आती है। कृष्ण पक्ष 1 तारीख से लेकर 15 तारीख तक होता है और शुक्ल पक्ष 15 तारीख से लेकर 30 तारीख तक होता है।

सभी चतुर्थी का अपना एक अलग महत्व होता है। लेकिन जो चतुर्थी माघ महीने में कृष्ण पक्ष में आती है। उसका अपने आप में एक विशेष महत्व होता है। इसीलिए सकट चौथ का व्रत माघ महीने में कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तारीख को रखा जाता है।

सकट चौथ क्यों किया जाता है

सकट चौथ व्रत इसीलिए मनाया जाता है क्योंकि इस दिन भगवान श्री गणेश जी अपने ऊपर आए हुए संकट से बाहर निकल गए थे। सनातन धर्म शास्त्रों के अनुसार एक बार जब माता पार्वती जी अपने स्नान कक्ष में स्नान करने के लिए गयी। तब उन्होंने गणेश जी को अपने कक्ष के बाहर पहरा देने के लिए कहा था।

गणेश जी अपनी माता की आज्ञा मानकर पेहरा दे रहे थे। तभी भगवान शिव जी वहां पर आए और वह कक्ष के अंदर जाने की हठ करने लगे। भगवान गणेश ने उन्हें बहुत बार रोका लेकिन वह नहीं माने। तब भगवान शिव जी ने क्रोधित होकर अपने पुत्र भगवान श्री गणेश का सर त्रिशूल से अलग कर दिया। इस सारे दृश्य को देखकर मां पार्वती वियोग करने लगी और वह क्रोधित हो गयी।

उनके क्रोध से चारों तरफ हाहाकार मच गया। तब सभी देवी-देवताओं ने मां पार्वती के क्रोध को शांत करवाया और शिवजी जी से गणेश का मुख को जोड़ने का अनुरोध किया। फिर शिवजी ने एक हाथी के बच्चे का सर गणेश जी के सर के ऊपर लगा दिया। जिससे गणेश पुनः जीवित हो गए और गणेश जी को सभी देवताओं में सर्वश्रेष्ठ माने जाने का भी आशीर्वाद दिया।

हाथी का सर लगने के कारण गणेश जी को गजानंद भी कहा जाने लगा। इस तरह इस दिन माता पार्वती ने अपने पुत्र की प्राप्ति की। इसीलिए इस दिन का महत्व बढ़ जाता है। इसीलिए इस दिन माताएं अपने पुत्र संतान की लंबी आयु के लिए कृष्ण चतुर्थी पर सकल चौथ व्रत को रखती है।

सकट चौथ का महत्व (Significance of Sakat Chauth)

सकट चौथ व्रत के महत्व की बात करें तो शास्त्रों के अनुसार यह वही दिन था। जिस दिन भगवान श्री गणेश जी के ऊपर बहुत बड़ा संकट आया था। लेकिन वह माता पार्वती के आशीर्वाद से इस संकट से बाहर निकल गए। इसीलिए सकट चौथ व्रत की महत्वता बढ़ जाती है।

ऐसा माना जाता है कि इस दिन भगवान गणेश जी की आराधना करने से सभी दु:ख दूर हो जाते हैं। परिवार में खुशहाली मिलती है। अधिकतर लोग माघ महीने की कृष्ण पक्ष में आ रही चतुर्थी के दिन निर्जला व्रत भी रखते हैं। यह व्रत सुबह से लेकर शाम तक का होता है और भगवान शिव पार्वती और गणेश जी की पूजा करते हैं।

फिर गणेश जी को भोग लगाते हैं और उनसे सुख समृद्धि और परिवार की खुशी के लिए प्रार्थना करते हैं। इसलिए सकट चौथ मनाने का महत्व अपने आप में बहुत ही ज्यादा है। इस दिन अगर कोई भगवान गणेश जी के मंत्रों का उच्चारण कर ले या उनके 12 नामों को ही जप ले तो उसके सारे संकटों को भगवान गणेश हर लेते हैं और उसे सुख, शांति प्रदान करते हैं।

सकट चौथ की पूजा विधि

सकट चौथ व्रत को करने की विधि निम्न प्रकार की है। जिसके बारे में हमने निचे विस्तार से बताया है।

  • जिन लोगों ने व्रत को धारण करना है वह लोग माघ मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करके स्वच्छ वस्त्रों को धारण कर लें।
  • फिर वह अपने घर में रखे पूजा स्थल पर आकर भगवान श्री गणेश जी का विधिपूर्वक ज्योत लगा कर आरती करके, उनकी पूजन शुरू करके, व्रत का संकल्प लें।
  • फिर जो लोग निर्जला व्रत रखना चाहते हैं। वह बिना कुछ खाए-पिए पूरा दिन निर्जला व्रत रख सकते हैं और जो लोग निर्जला व्रत नहीं रखना चाहते हैं। वह फलाहार खाकर अपने व्रत को पूरा कर सकते हैं।
  • अपनी पूजा थाली में उसके अंदर एक जल का कलश, कुछ फूल, ध्रुवा, एक मोली, सिंदूर और तिलकुट इत्यादि पूजन की सामग्री को अच्छे से रख ले।
  • संध्या काल में अपनी पूजा की थाली को लेकर भगवान गणेश जी का पूजन करें। उन्हें जल चढ़ाएं, पुष्प चढ़ाएं, ध्रुवा चढ़कर, मौली बांधे, सिंदूर का टीका लगाए और तिलकुट भोग लगाकर विधि पूर्वक गणेश जी की आराधना करें। उनसे परिवार के सुख समृद्धि के लिए प्रार्थना करें।
  • फिर उसके बाद चंद्रदेव को भी जल अर्पित करें और उनका विधि पूर्वक आरती करके पूजन करें।

सकट चौथ क्या है निष्कर्ष:

आज हमने इस आर्टिकल में सकट चौथ क्या है, सकट चौथ के महत्व क्या है, सकट चौथ पूजा कैसे की जाती है इत्यादि के बारे में समस्त जानकारी आपके समक्ष रखी। हम आशा करते है कि आपको यह आर्टिकल बहुत पसंद आई होगी। अगर आपको यह जानकारी अच्छी लगी तो कृपया इसे जरूर शेयर करे और अगर आपके मन में इस आर्टिकल से संबंधित कोई सवाल या विचार है तो हमे नीचे comment करके आसानी से बता सकते है।

FAQs:

प्रश्न: सकट चौथ व्रत क्या होता है?

उत्तर: यह एक व्रत है, भारत में सनातन धर्म के अनुसार सकट चौथ व्रत संतान की प्राप्ति और संतान की लंबी आयु के लिए रखा जाता है।

प्रश्न: सकट चौथ का क्या महत्व है?

उत्तर: ऐसा माना जाता है कि इस दिन भगवान गणेश जी की आराधना करने से सभी दु:ख दूर हो जाते हैं। परिवार में खुशहाली मिलती है।

प्रश्न: सकट चौथ व्रत कब आता है?

उत्तर: सकट चौथ व्रत हर साल माघ मास के कृष्ण पक्ष चतुर्थी के दिन आता है।