Egas Bagwal Kya Hota Hai – ईगास बग्वाल कब और कैसे मनाते है

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भारत विभिन्न जातियों और संस्कृतियों का देश है। जहां हर तरह के धर्म के लोग अपने अपने त्योहारों को बड़े ही धूम धाम से मनाते है। भारत में कुछ प्रमुख त्यौहार है जिन्हे बड़ी जोरो सोरो से हर साल मनाया जाता है। जैसे कि दीवाली, होली, ईद, क्रिसमस, दुर्गा पूजा, बैशाखी, गणेश पूजा इत्यादि। ऐसे ही भारत के उत्तरी भाग में स्थित उत्तराखंड में एक त्यौहार मनाया जाता है जो बहुत ही लोकप्रिय है। जी हां हम बात कर रहे है ‘इगास बग्वाल’ की, जो उत्तराखंड में बहुत ही धूमधाम से मनाया जाता है।

लेकिन बहुत लोगो को इस त्योहार के बारे में थोड़ी भी जानकारी नहीं होती है। इसलिए हम इस लेख के माध्यम से इगास बग्वाल क्या होता है Egas Bagwal Kya Hota Hai, Egas Bagwal की मान्यताएं, Egas Bagwal ग्यारहवें दिन ही क्यों मनाई जाती है, Egas Bagwal का पर्व कब मनाया जाता है, इत्यादि के बारे में आज हम इस संबंध में संपूर्ण चर्चा करेंगे। अतः इस लेख को अंतिम तक पूरा अवश्य पढ़े।

Egas Bagwal Kya Hota Hai

Egas Bagwal Kya Hota Hai

दीपावली का पर्व पूरे देश में बहुत ही घूमधाम और पूरे हर्ष उल्लास के साथ मनाया जाता है। उत्तराखंड में भी दीपावली को लेकर गढ़वाल के लोगो में अच्छा खासा उत्साह के साथ मनाते देखा जाता है। लेकिन उत्तराखंड में दीपावली के ठीक 11 दिन के बाद फिर से दीपावली मनाई जाती है। जिसे ईगास बग्वाल कहते है। इस पर्व को बूढ़ी दीपावली के नाम से भी जाना जाता है।

इस पर्व को सदियों से मनाने की परंपरा चली आ रही है। गढ़वाल के लोग इस दीपावली को बग्वाल का नाम देते है और इसे बड़े ही धूमधाम से मनाते है। वही 11 दिन के बाद मनाई जाने वाली एक और दीपावली को गढ़वाल के लोग ईगास का नाम देते है यानी ईगास के नाम से जानते है। ईगास बग्वाल को कुमाऊं के लोग बूढ़ी दीपावली के नाम से जानते है।

Egas Bagwal का पर्व कब मनाया जाता है (When Is Egas Bagwal Celebrated)

दीपावली के ग्यारहवे दिन के बाद उत्तराखंड में बड़े ही धूमधाम से ईगास बग्वाल का पर्व मनाया जाता है। उत्तराखंड में यह पर्व कर्तिक माह में कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि से शुरू होती है और मार्गशीष माह की अमावस्या तिथि तक चलती है। उत्तराखंड के अलावा इसे जौनपुर, थौलधार, प्रतापनगर, रंवाई, चमियाला आदि क्षेत्रों में भी बड़े ही पूरे हर्ष उल्लास से मनाई जाती हैं। अब तो मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने भी इस पर्व के दिन राजकीय छुट्टी घोषित करने का ऐलान कर दिया है। ईगास बग्वाल (Egas Bagwal) के पर्व पर प्रदेश सरकार ने 1 दिन की छुट्टी की घोषणा की है।

मान्यता के अनुसार जब भगवान श्री राम 14 वर्ष के वनवास को पूरा करके और साथ ही लंका पर विजय प्राप्त कर के वापस अपने राज्य आ रहे थे तो लोगो ने उनका स्वागत आग जला कर, नित्य करके और गीत गा कर किया था। तो उसी दिन से लोग भगवान श्री राम के वापस आने पर दीपावली का त्यौहार मानने लगे थे। लेकिन अयोध्या लौटने की खबर गढ़वाल के लोगो तक पहुंचने में 11 दिन का समय लग गया था। इसी कारण के वजह से गढ़वाल के लोग इस पर्व को 11 दिन के बाद ईगास बग्वाल के पर्व के रूप में मनाते है।

Egas Bagwal के पर्व की मान्यताएं

उत्तराखंड राज्य में दिवाली के ग्यारहवें दिन मनाए जाने वाले Egas Bagwal पर्व के पीछे यह मान्यता है की प्राचीन काल के अनुसार वीर माधो सिंह गढ़वाल में राजा महीपति शाह के सेना के सेनापति थे। आज से 400 साल पहले राजा महिपति ने अपने सेनापति माधो सिंह को युद्ध के लिए तिब्बत भेजा था। इसी दौरान Bagwal का पर्व भी मनाया जाना था लेकिन Bagwal का पर्व आने तक सेनापति माधो सिंह सहित सेना से कोई भी वापस नहीं आ पाया और सबने लगभग माना लिया की कोई भी अब जिंदा नहीं बचा है। लेकिन Bagwal पर्व के 11वे दिन बाद सेनापति माधो सिंह तिब्बत में लड़े जा रहे दवापाघाट युद्ध से जीत कर वापस आ गए। लोगो में उन्हें देखकर खुशी का ठिकाना नहीं रहा और तब ही से इस दिन को Egas Bagwal कहा जाने लगा।

Egas Bagwal ग्यारहवें दिन ही क्यों मनाई जाती है

Egas Bagwal एक राज्य स्तरीय परंपरा है जिसे उत्तराखंड में मनाया जाता है। दिवाली के ग्यारहवें दिन में इस त्योहार को मनाने की परंपरा है। उत्तराखंड के गढ़वाल क्षेत्र में मनाया जाने वाला Egas Bagwal प्राचीन काल से ही मनाया जा रहा है। कुछ क्षेत्रों में इसको अलग नामों से भी जाना गया है जैसे की अगर हम बात करे कुमाऊं क्षेत्र की तो यह इस पर्व को बूढ़ी दिवाली नाम से भी जाना जाता है।

ग्यारहवें दिन ही ईगास बग्वाल का पर्व उत्तराखंड में इस लिए मनाई जाती है क्यों की ऐसी मान्यता है कि जब भगवान श्री राम ने लंका पर विजय प्राप्त करने के बाद अपने राज्य की ओर जाने लगे तो वहां के स्थानीय लोगो ने बहुत ही धूमधाम से उनका स्वागत किया। लेकिन उत्तराखंड के लोगो को भगवान श्री राम की अयोध्या लौटने की जानकारी 11 दिन बाद लगी। इसलिए वो ग्यारहवें दिन के बाद दीपावली मनाने लगे। इसी दिन ऐसा माना जाता है कि तुलसी जी का विवाह शालिग्राम से हुआ था। ऐसी ही कई मान्यताएं और भी है जिसके कारण Egas Bagwal का पर्व ग्यारहवें दिन ही मनाई जाती है।

Egas Bagwal त्योहार के परंपरा के अनुसार क्षेत्र के लोगो द्वारा रात में क्षेत्रीय देवी देवताओं की पूजा पूरे विधि विधान से की जाती है। इस दिन एक परंपरा और भी हैं और वो है भैलों जलाने की परंपरा, भैलो दरअसल एक आग का गोला होता है जिसे स्थानीय लोगो द्वारा लेकर नित्य किया जाता है और ढोल नगाड़े भी बजाए जाते है। Egas Bagwal को बड़े ही हर्षोल्लास के साथ स्थानीय लोगो द्वारा मनाया जाता है।

Egas Bagwal का पर्व कैसे मनाते है (How Is Egas Bagwal Celebrated)

अब जैसा की आपने ऊपर कुछ बाते इस Egas Bagwal के बारे में तो समझ ही ली होगी की इस दिन क्षेत्रीय लोगो द्वारा क्या क्या किया जाता है। अब हम आपको बताते है Egas Bagwal के कैसे मनाया जाता है पूरे विस्तार से जानते है।

Egas Bagwal के दिन सुखी लकड़ियों के छोटे छोटे टुकड़ों को इकट्ठा करके जलाया जाता है जैसे की आम तौर पर हम सभी होलिका के दिन करते है। भैलो का तिलक, उर पूजा को पूरे विधि विधान से करने के बाद लगाया जाता है। स्थानीय लोग आग किनारे किनारे घूमते है और अपने परंपरा अनुसार नृत्य करते है। Egas Bagwal के दिन पारंपरिक लोकनृत्य करते हुए झुमेलो और भैलो रे भैलो वहा का लोकगीत भी गाया जाता है। Egas Bagwal के दिन स्थानीय देवी देवताओं के जागर गाया जाता है।

Egas Bagwal Kya Hota Hai निष्कर्ष:

आज हमने इस लेख में ईगास बग्वाल क्या होता है Egas Bagwal Kya Hota Hai, Egas Bagwal की मान्यताएं, Egas Bagwal ग्यारहवें दिन ही क्यों मनाई जाती है, Egas Bagwal का पर्व कब मनाया जाता है, इत्यादि के बारे में बहुत ही सरल और आसान शब्दों में समझाया और इससे जुड़ी समस्त जानकारियां आप तक पहुंचाई। यदि आपको यह लेख अच्छी लगी है तो इस लेख को अपने दोस्तो और परिवार के साथ सोशल मीडिया में जरुर साझा करे। इससे जुड़ी और भी जानकारी और इसमें आने वाले अपडेट की जानकारी के लिए इस लेख से अवश्य जुड़े।

FAQs:

प्रश्न: ईगास बग्वाल क्या होता है?

उत्तर: उत्तराखंड में दीपावली के ठीक 11 दिन के बाद फिर से दीपावली मनाई जाती है। जिसे ईगास बग्वाल कहते है।

प्रश्न: ईगास बग्वाल का पर्व कब मनाया जाता है?

उत्तर: दीपावली के ग्यारहवे दिन के बाद उत्तराखंड में बड़े ही धूमधाम से ईगास बग्वाल का पर्व मनाया जाता है। उत्तराखंड में यह पर्व कर्तिक माह में कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि से शुरू होती है और मार्गशीष माह की अमावस्या तिथि तक चलती है।

प्रश्न: ईगास बग्वाल के पर्व में क्या करते है?

उत्तर: Egas Bagwal के दिन सुखी लकड़ियों के छोटे छोटे टुकड़ों को इकट्ठा करके जलाया जाता है जैसे की आम तौर पर हम सभी होलिका के दिन करते है। भैलो का तिलक, उर पूजा को पूरे विधि विधान से करने के बाद लगाया जाता है।