जिसके कारण केंद्र सरकार के द्वारा लाया गया ‘Delhi Sewa Bill‘ है। आखिरकार Delhi Sewa Bill Kya Hai, दिल्ली सेवा बिल 2023 का उद्देश्य, किसने पेश किया और राजनीतिक प्रतिक्रिया इन सभी सवालों का जवाब आज के अपने इस आर्टिकल में हम आपको देंगे। आप हमारे इस आर्टिकल को अंत तक जरूर पढ़े और जाने Delhi Sewa Bill Kya Hai से संबंधित हर एक पहलू को।
भारत देश के अंदर हर चीज संविधान के दायरे में रहकर ही चलती है। चाहे वह कानून व्यवस्था हो, चाहे किसी राज्य की शक्तियां हों या फिर केंद्र शासित प्रदेश हो। सब को चलाने के लिए संविधान के अंदर अलग-अलग अनुच्छेद अधिनियम बनाए गए हैं। जिसका हर किसी को सख्ती से पालन करना होता है। पिछले कुछ महीनों से भारत के अंदर राजनीतिक गलियारों में बहुत ही उथल-पुथल चल रही है।
Delhi Sewa Bill Kya Hai
भारत की राजधानी कहे जाने वाली दिल्ली में संविधान के अनुसार 1991 GNCTD (Means The Government Of National Capital Territory Of Delhi) का अधिनियम लागू है। जिसके तहत दिल्ली की विधानसभा और दिल्ली सरकार के कामकाज का पूरा रूप रेखा तैयार किया गया है। जिस अधिनियम के तहत दिल्ली सरकार को काम करना होता है।
साल 2021 में भारत केंद्र सरकार ने 1991 अधिनियम कानून में संशोधन करके कुछ नियमों का बदलाव किया था। इस अधिनियम में संशोधन करने के बाद यह जोड़ा गया। कि चुनी हुई दिल्ली सरकार को अपने किसी भी महत्वपूर्ण अधिकार के फैसले लेने से पहले उपराज्यपाल से उसे साझां करके उनकी राय लेना जरूरी होगी। इसके तरह अधिनियम संशोधन में बदलाव करके दिल्ली उप-राज्यपाल को अतिरिक्त शक्तियां प्रदान की गई थी।
सुप्रीम कोर्ट का आदेश क्या है
जब भारत केन्द्र सरकार ने दिल्ली अधिनियम 1991 में संशोधन किया। तब उसको लेकर दिल्ली सरकार के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की तरफ से सुप्रीम कोर्ट में एक अपील की गई थी। जिसमें कहा गया था कि जमीन, कानून व्यवस्था और पुलिस को छोड़कर बाकी सभी अधिकार दिल्ली विधानसभा में चुनकर बैठी सरकार को दिए जाए।
चीफ जस्टिस “D.Y. Chanderchurd” के सामने जब यह मामला रखा गया। तब उन्होंने 5 जजों की एक बेंच बनाई। जिसने इस सारे मामले को सुना। फिर 11 मई को इस पर एक अध्यादेश जारी कर दिया गया। जिसमें यह कहा गया कि जमीन, पुलिस और कानून व्यवस्था से संबंधित नियमों को छोड़ बाकी सभी दिल्ली की चुनी हुई सरकार को फैसला लेने का अधिकार दे दिया।
जिसके बाद दिल्ली के मुख्यमंत्री के पास प्रशासनिक अधिकारों से संबंधित फैसले लेने का भी अधिकार आ गया और सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि उप-राज्यपाल तीन मुद्दों को छोड़कर बाकी सब पर दिल्ली की चुनी हुई सरकार के फैसले को मानने के लिए वाधय होंगे।
दिल्ली सेवा बिल 2023 लाने का उद्देश्य
केंद्र सरकार ने 19 मई को एक अध्यादेश लेकर आई। यह अध्यादेश ठीक सुप्रीम कोर्ट के फैसले के एक हफ्ते के बाद लाया गया। इस अध्यादेश में केंद्र सरकार की तरफ से ‘Government Of National Capital Territory Of Delhi Ordinance- 2023‘ पेश किया गया। जिसमें यह साफ तौर पर लिखा था। कि दिल्ली में प्रशासनिक अधिकारियों की नियुक्तियां और ट्रांसफर का अधिकार उपराज्यपाल के पास ही रहेगा।
इस अध्यादेश के अंतर्गत केंद्र सरकार ने दिल्ली के लिए ‘National Capital Civil Service Authority’ के नाम का एक गठन बनाया। इस गठन के तहत तीन सदस्य कमेटी बनाई गई। जिसमें दिल्ली के मुख्यमंत्री, दिल्ली के गृह सचिव और दिल्ली के मुख्य सचिव के नाम रखे।
इस कमेटी के मुखिया के तौर पर दिल्ली के मुख्यमंत्री को रखा गया।
इस कमेटी का मुख्य काम यह होगा कि दिल्ली में कोई भी प्रशासनिक अधिकारियों से संबंधित फैसला लेना हो। तो इन तीन सदस्य कमेटी की राय एक होनी चाहिए। जिसके पक्ष में तीन में से दो वोट पड़ेंगे, उसी के पक्ष में फैसला जाएगा।
अगर इस दौरान 3 सदस्य कमेटी के बीच किसी प्रकार से तालमेल नहीं बैठता है। तो उस स्थिति में उपराज्यपाल का ही फैसला अंतिम रूप में स्वीकार्य किया जाएगा। इसीलिए केंद्र सरकार ने मंगलवार को ‘दिल्ली सेवा बिल 2023′ लेकर आई, जिससे लोकसभा में सभापति पीठ के सामने रखा गया।
Delhi Sewa Bill को किसने पेश किया
लोकसभा सदन पठ पर इस बिल को भारत सरकार के गृह मंत्री श्री अमित शाह जी ने सदन पठ पर रखा। जिसके तहत इस बिल पर समस्त सांसदों ने अपनी अपनी राय रखी और गहनता से चर्चा भी की। जिसके उपरांत यह बिल लोकसभा से पास हो गया।
अब इस बिल को राज्यसभा सदन के पठ पर रखकर वहां से पास करवाने के बाद संविधान अनुच्छेद 123 के तहत राष्ट्रपति के पास भेजा जाएगा। फिर राष्ट्रपति इस बिल पर अपनी मोहर लगा देंगे। जिसके बाद यह अध्यादेश एक कानून का रूप ले लेगा।
केंद्र सरकार को Delhi Sewa Bill क्यों लाना पड़ा
जब सुप्रीम कोर्ट ने 6 मई को दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के पक्ष में फैसला सुना दिया। तब दिल्ली में प्रशासनिक अधिकारियों की नियुक्ति और तबादले का अधिकार दिल्ली मुख्यमंत्री को मिल गया। इस स्थिति में कोर्ट के इस फैसले को रोका नहीं जा सकता था।
लेकिन केंद्र सरकार सदन पठ के माध्यम से कानून बनाकर इस फैसले को पलट सकती थी। यही कारण था कि केंद्र सरकार ने अध्यादेश लाकर, इस नियम में संशोधन कर दिया और इसे लागू कर दिया।
क्योंकि किसी भी अध्यादेश को अगर कोई सरकार लाती है। तो उस स्तिथ में उसे 6 महीने के अंदर लोकसभा सदन और राज्यसभा सदन के पठ पर रखकर पारित करवाना होता है। फिर उसके बाद राष्ट्रपति की मोहर लगती है। जिसके बाद यह अध्यादेश एक कानून का स्वरूप ले लेता है।
दिल्ली सेवा बिल को लेकर राजनीतिक प्रतिक्रिया
दिल्ली सेवा बिल के खिलाफ आम आदमी पार्टी मुख्य तौर पर है। वह कहती है कि केंद्र सरकार ने दिल्ली सरकार की शक्तियां छिनने के लिए इस बिल को लेकर आई है। जबकि सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली की चुनी हुई सरकार के पक्ष में फैसला सुना दिया है।
ऐसे ही कांग्रेस के अधीर रंजन चौधरी भी इस बिल के समर्थन में नहीं है। वह भी यही मान रहे हैं कि चुनी हुई दिल्ली सरकार के पास प्रशासनिक अधिकार और स्वतंत्रता से कामकाज करने की आजादी होनी चाहिए।
इसके अलावा I.N.D.I.A. गठन के अंतर्गत आने वाली अन्य पार्टीयां भी ‘दिल्ली सेवा बिल 2023’ संशोधन के समर्थन में नहीं है। जबकि केंद्र सरकार को इस बिल पर N.D.A सदस्यों का समर्थन मिला है। इसके अलावा बीजीडी और वाई.एस.आर कांग्रेस जैसी पार्टियों ने भी इस बिल के समर्थन में केंद्र सरकार का साथ दिया है।
Delhi Sewa Bill निष्कर्ष
आज हमने इस आर्टिकल में Delhi Sewa Bill Kya Hai, दिल्ली सेवा बिल 2023 का उद्देश्य, किसने पेश किया और राजनीतिक प्रतिक्रिया के बारे में समस्त जानकारी आपके समक्ष रखी। हम आशा करते है कि आपको यह आर्टिकल बहुत पसंद आई होगी। अगर आपको यह जानकारी अच्छी लगी तो कृपया इसे जरूर शेयर करे और अगर आपके मन में इस आर्टिकल से संबंधित कोई सवाल या विचार है तो हमे नीचे comment करके आसानी से बता सकते है।
Thnx for share.. Very best post. Ty.