Dal Badal Kya Hai – दल बदल कानून का इतिहास, अपवाद, कब लागू होगा

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कई राज्‍यों की सरकारे 1967 के आम चुनाव के बाद विधायको या सांसदों के दल या पार्टी बदलने से गिरी है। ऐसा कई बार होता रहा। इसे रोकने के लिए किसी ठोस कानून की आवश्यकता थी। ऐसे में इसे रोकने के एक कानून पारित किया गया जिसे दल बदल कानून कहा जाता है। सन 1985 में संविधान में 52वें संशोधन के द्वारा देश में दल बदल कानून को लागू किया गया था। दल बदल कानून की सहायता से उन विधायकों या सांसदों को दंडित करने का प्रवधान बनाया गया जो अपनी पार्टी को त्याग कर दूसरे दल या पार्टी में जाकर शामिल होते है।

तो आइए जानते है कि दल बदल क्या है (Dal Badal Kya Hai), इसका इतिहास, दल बदल कौन तय करता है, कब लागू होता है, कब नही लागू होता है और इस कानून के अपवाद क्या क्या है इत्यादि के बारे में संपूर्ण जानकारी इस लेख के माध्यम से बताई जाएगी। अतः इस लेख को अंतिम तक पूरा अवश्य पढ़े।

Dal Badal Kya Hai

Dal Badal Kya Hai (दल बदल क्या है)

Dal Badal एक कानून है, जो सदस्य एक दल को छोड़ कर दूसरे दल या पार्टी में शामिल होते है तो इसको दल बदल कहते है। दल बदल कानून को और भी स्पष्ट रूप से समझा जा सकता है। दरअसल दल बदल कानून यह है कि अगर किसी भी राजनीतिक दल या पार्टी दो तिहाई से अधिक सांसद या विधायक सदस्य, पार्टी से अपनी नाराजगी व्यक्त करते है या नाखुश हो कर अपना अलग गुट बना लेते है और उनके गुट को ही मुख्य पार्टी के रूप में देखा जाता है तो ऐसे में उनकी सदस्यता को रद्द नहीं किया जा सकता है। तो इस कानून को दल बदल कानून कहते है।

अगर कोई एक सांसद या विधायक अपने दल को छोड कर या पार्टी को छोड़ कर अपनी सदस्यता से इस्तीफा ले लेता है या फिर किसी अन्य पार्टी में जाकर शामिल हो जाता है तो पार्टी अध्यक्ष और सदन सचेतक के कहे जाने पर सभापति उसकी सदस्यता रद्द कर सकता है।

Dal Badal का इतिहास (History of Anti Defection Law)

सांसद या विधायक सदस्य 1967 और 1971 में आम चुनाव के लिए 4000 से अधिक सदस्य चुने गए थे। जिसमे 50 प्रतिशत से ज्यादा सदस्य दूसरे पार्टी में शामिल हो गए थे। भारत में इस तरह के दल बदलने या अपने दल को छोड़ कर दूसरे दल या पार्टी में शामिल होने की होड़ पर अंकुश या दंडित करने के लिए एक कानून बनाने की मांग होने लगी थी। सन 1985 में संविधान में 52वें संशोधन के द्वारा देश में दल बदल कानून को लागू किया गया था।

इसके साथ साथ संविधान में 10वीं अनुसूची में इस कानून को जोड़ा गया है। इस कानून में विधायकों और सांसदों द्वारा दल बदल करने पर उनकी सदस्यता भी ख़त्म की जा सकती है। दल बदल कानून से यह भी फायदा है कि विधायकों और सांसदों के दल बदलने या दूसरे पार्टी में शामिल होने पर अंकुश लगाया जा सकता है।

Dal Badal कौन तय करता है

कानून के तीनो स्थितियों में से किसी भी स्थिति में कानून का उल्‍लंघन करना पार्टी सदस्य को थोड़ा खामयाजा भुगतना पड़ सकता है। संविधान के 10वीं अनुसूची के आधार पर स्‍पीकर या चेयरमैन ऐसे मामलों में फैसला लेते है। कोर्ट के मुताबिक इनके फैसलों से नाराजगी उच्च न्यायालयों में व्यक्त की जा सकती है।

10वीं अनुसूची के पैराग्राफ़ 6 के अनुसार स्पीकर या चेयरमैन का फैसला दल बदल कानून के लिए आखरी माना जायेगा। 1991 में सुप्रीम कोर्ट के अनुसार संवैधानिक बेंच ने 10वीं अनुसूची को सही माना है और यह साफ कर दिया कि स्पीकर के फ़ैसले को कानूनी रूप से मान्य होगा।

Dal Badal लागू होगा

दल बदल कानून, विधायकों या सांसदों में कहां कहां और कब कब लागू होता है ये निम्नलिखित है–

  • अगर कोई विधायक या सांसद अपनी मर्जी से पार्टी या दल की सदस्यता का त्याग करता है तो यहां दल बदल कानून लागू होगा।
  • अगर कोई विधायक या सांसद पार्टी या दल के विरुद्ध हो जाता है तो यहां पर यह कानून लागू होगा।
  • यह कानून यहां लागू होगा, अगर कोई विधायक या सांसद सदस्य पार्टी के मर्जी के बिना वोट करता है।
  • कोई सदस्य अगर पार्टी के आदेश का सही से पालन नहीं करता है।
  • अगर कोई विधायक या सांसद बनने के बाद अपनी मर्जी से पार्टी या दल की सदस्यता को त्यागने, पार्टी के आदेश का उल्लंघन करना भी यहां दल बदल का कानून लागू होता है।

Dal Badal लागू नहीं होगा

  • जब एक पूरी पार्टी किसी अन्य राजनीतिक पार्टी या दल में शामिल हो जाती है।
  • अगर कोई निर्वाचित सदस्य अपना एक नया दल बना लेता है तो यहां दल बदल कानून लागू नहीं होता है।
  • अगर किसी पार्टी या दल के सदस्य दो पार्टियों का आपस में मिलना या शामिल होने की स्वीकृति नहीं दे पाते और पार्टियों में शामिल होकर अगर ग्रुप में रहने की इच्छा रखते है।
  • अगर किसी भी राजनीतिक दल या पार्टी के दो तिहाई से अधिक सांसद या विधायक सदस्य से अलग होकर नए पार्टी में जा कर मिल जाते है तब दल बदल का कानून लागू नहीं होगा।

Dal Badal में अपवाद

  • अगर किसी भी राजनीतिक दल या पार्टी के दो तिहाई से अधिक सांसद या विधायक सदस्य दूसरी पार्टी में जा कर शामिल होना चाहे तो ऐसे में वो जा सकते है उनकी सदस्यता समाप्त नहीं होगी।
  • अगर विधायक अपनी सदस्यता रद्द होने की स्थिति में है और वो चाहते है कि उनकी सदस्यता रद्द ना हो तो एक पार्टी के दो तिहाई सदस्य अपने पार्टी से हट कर अन्य पार्टी में जा कर शामिल हो सकते है।
  • दल बदल कानून की स्थिति में दूसरे पार्टी में शामिल होने वाले सदस्य और ना ही अपने पार्टी के सदस्य को अयोग्य करार दिया जा सकता है।
  • दल बदल कानून में 2003 में कुछ संशोधन किया गया था। उस समय इस कानून के आधार पर अगर किसी पार्टी को बाटा जाए तो एक तिहाई विधायक या सांसद नया समूह तैयार करते है तो ऐसे में उनकी सदस्यता रद्द नहीं होगी।
  • 2003 में इस कानून के संशोधन के बाद बड़े स्तर में दल बदल हुए। ऐसे में पार्टी में जो बँटवारा होता था या अलग समूह बनाए जाते थे, उसका फायदा उन्हे बखूबी मिलने लगा और यही एक त्रुटि दल बदल कानून में साफ देखने को मिल रहा था। इसलिए इसे पूरी तरह समाप्त कर दिया गया।
  • संविधान में 91वाँ संशोधन जोड़ने के बाद, बस व्यक्तिगत ही नही बल्कि समूह वाले दल बदल को असंवैधानिक घोषित किया गया।

Dal Badal Kya Hai निष्कर्ष:

दोस्तों, आज हमने इस आर्टिकल में दल बदल क्या है (Dal Badal Kya Hai), इसका इतिहास, दल बदल कौन तय करता है, कब लागू होता है, कब नही लागू होता है और इस कानून के अपवाद क्या क्या है इत्यादि के बारे में समस्त जानकारी आपके समक्ष रखी। हम आशा करते है कि आपको यह आर्टिकल बहुत पसंद आई होगी। अगर आपको यह जानकारी अच्छी लगी तो कृपया इसे जरूर शेयर करे और अगर आपके मन में इस आर्टिकल से संबंधित कोई सवाल या विचार है तो हमे नीचे comment करके आसानी से बता सकते है।

FAQs

प्रश्न: दल बदल क्या है?

उत्तर: दल बदल एक कानून है कि अगर किसी भी राजनीतिक दल या पार्टी दो तिहाई से अधिक सांसद या विधायक सदस्य, पार्टी से अपनी नाराजगी व्यक्त करते है या नाखुश हो कर अपना अलग गुट बना लेते है और उनके गुट को ही मुख्य पार्टी के रूप में देखा जाता है तो ऐसे में उनकी सदस्यता को रद्द नहीं किया जा सकता है।

प्रश्न: दल बदल विरोधी कानून कब पारित किया?

उत्तर: सन 1985 में संविधान में 52वें संशोधन के द्वारा देश में दल बदल कानून को लागू किया गया था।

प्रश्न: दल बदल कानून कब लागू होगा?

उत्तर: अगर कोई विधायक या सांसद अपनी मर्जी से पार्टी या दल की सदस्यता का त्याग करता है। इसके साथ साथ या तो दल के विरुद्ध हो जाता है तो यहां दल बदल कानून लागू होगा।