हमारे भारत देश में अलग-अलग धर्म के लोग रहते है और सब के अपने-अपने धर्म होते है। अगर बात की जाये हिन्दू धर्म की तो भारत देश में सबसे ज्यादा हिन्दू धर्म के लोग रहते है जों अपने शास्त्रों के अनुसार पूजा पद्धति पर विश्वास करते हैं और उन्हें मनाते हैं। जैसे की भैया दूज के व्रत से लेकर छठ पूजा का व्रत और करवा चौथ के व्रत से लेकर लक्ष्मी पूजा का व्रत इत्यादि हो।
इसलिए आज के अपने इस इस आर्टिकल में हम बात करेंगे तिल चौथ क्या है, तिल चौथ व्रत के महत्व, विधि इत्यादि के बारे में सम्पूर्ण जानकारी आपके साथ साझा करेंगे। इन्ही सब की जानकारी संक्षिप्त रूप से आज हम अपने इस आर्टिकल के माध्यम से आपको देंगे। आप इस आर्टिकल को अंत तक जरूर पढ़ें और तिल चौथ से संबंधित जानकारियों को प्राप्त करें।
तिल चौथ क्या है (Til Chauth In Hindi)
दोस्तों सनातन धर्म के अनुसार तिल चौथ को सकट चतुर्थी के नाम से भी जाना जाता है जो हर साल माघ के महीने में आता है। इस दिन महिलाएं संतान प्राप्ति के लिये चौथ माता का व्रत रखती है और चौथ माता और भगवान श्री गणेश को तिल और गुड़ का भोग लगाकर विधि पूर्वक उनकी आराधना करती है। तिल चौथ को तिलकुट चौथ व माही चौथ भी कहा जाता है।
तिल चौथ व्रत क्यों मनाया जाता है
हिन्दू पुराणों के अनुसार कहा जाता है की एक बार एक सेठ और उसकी धर्मपत्नी सेठानी होती है और दोनों की काफी सालो से औलाद नहीं हो पा रही थी और दोनों इससे काफी दु:खी थे। एक बार सेठानी कुछ महिलाओं को पूजा करती हुई देख लेती है और फिर सेठानी उन महिलाओं के पास जाकर उनसे सवाल करती है की तुम किसकी पूजा कर रही हो।
तब महिलाएं सेठानी को बताती है की वह चौथ माता की पूजा कर रहे है और जों भी चौथ माता की पूजा करता है उनको संतान सुख की प्राप्ति होती है और उनके संतान की आयु भी बढ़ती है। महिलाओं की बात सुनकर सेठानी खुश हो जाती है और तुरंत चौथ माता से गर्भवती होने के लिये मन्नत मांग लेती है और कहती है की गर्भवती होने पर वह सवा किलो तिलकूट चौथा माता और भगवान श्री गणेशजी जी को भोग लगाएगी।
कुछ समय बाद सेठानी गर्भवती हो जाती है और अपनी मन्नत के अनुसार भोग चढ़ाने की बजाय सेठानी एक और मन्नत मांग लेती है की जब उसे संतान की प्राप्ति होंगी वह चौथ माता और भगवान श्री गणेश जी को ढाई किलो तिलकूट का भोग लगाएगी। कुछ समय बाद सेठानी को संतान की प्राप्ति होती है लेकिन सेठानी अपनी मन्नत को पूरी नहीं करती।
सेठानी का बेटा विवाह योग हो जाता है और इसी बीच सेठानी फिर से चौथ माता से एक और मन्नत मांगती है और कहती है की अगर उसके बेटे की शादी हुई तो वह पांच किलो तिलकूट चौथ माता और भगवान श्री गणेश जी को भोग चढ़ायेगी। कुछ समय बाद सेठानी के बेटे की शादी भी तैय हो जाती है। लेकिन सेठानी अपनी मन्नत को पूरी नहीं करती है। तत्पश्चात एक दिन जब सेठानी के बेटे का विवाह हो रहा होता है और उसका बेटा विवाह के समय फेरे ले रहा होता है।
तभी चौथ माता सेठानी के बेटे को मंडप से गायब कर देती है और घर के पास वाले पीपल के पेड़ पर उसे बाँध देती है। एक दिन जब सेठानी की बहु उस पीपल के पेड़ के पास से गुजर रही होती है तो सेठानी का बेटा अपनी पत्नी को पहचान लेता है और उसे आवाज देता है और अपनी आप बीती और सब बाते अपनी पत्नी को बता देता है।
जिसको सुनकर सेठानी की बहु हैरान हो जाती है। सेठानी और उसकी बहु की माँ दोनों मिलकर चौथ माता से क्षमा मांगते है और चौथ माता और भगवान श्री गणेश को तिलकूटा का भोग चढ़ाते है। आपको हम बता दे की इसी दौरान से ही माघ चतुर्थी को तिलकूट चतुर्थी के नाम से भी जाना जाने लगा।
तिल चौथ की कथा (Til Chauth Katha)
ऐसा कहा जाता है की सतयुग के महाराजा हरिशचंद्र के राज्य में एक कुम्हार रहता था। लेकिन उसका काम ठीक से नहीं चल पा रहा था। वो बर्तनो को आँवा लगता था और उसके बर्तन कच्चे के कच्चे ही रह जाते थे। तंग आकर एक दिन कुम्हार ने एक तांत्रिक से इसके बारे में पूछा तो तांत्रिक ने उसे सलाह दी की अगर वह किसी बच्चे की बली देगा तो उसका बिगड़ता हुआ काम ठीक होने लग जायेगा।
कुम्हार तांत्रिक की बातो में आ गया और उसने एक दिन तपस्वी ऋषि की विधवा पत्नी के पुत्र को अगवा करके सकट चौथ के दिन आँवा में डाल दिया। उसी दिन सकट चौथ के दिन बालक की विधवा माँ ने भगवान श्री गणेश जी की पूजा की थी और जब उस विधवा माँ का पुत्र उसे नहीं मिला तो उसने भगवान श्री गणेश से अपने पुत्र के लिये प्रार्थना की।
अगले दिन कुम्हार ने देखा की आँवा तो पक गया। लेकिन जिस बच्चे को उसने आँवा में डाला था वो जीवित रह गया। यह देखकर कुम्हार डर रह गया और उसने महाराजा हरिशचंद्र से अपने किये हुए पापों के लिये क्षमा माँगी और अपना पाप कबूल कर लिया।
राजा ने विधवा औरत से इस चमत्कार के पीछे के रहस्य के बारे में पूछा तो उस विधवा औरत ने राजा को भगवान श्री गणेश की पूजा के बारे में सब कुछ विस्तार से बताया। विधवा औरत की बात सुनकर राजा काफी खुश हुआ और उसने पुरे नगर में भगवान श्री गणेश की पूजा करने का आदेश दे दिया। इसलिए कहा जाता है की प्रत्येक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को संकटहरिणी माना जाता है।
तिल चौथ का महत्व
- इस दिन चौथ माता का व्रत लेने से जिन महिलाओं की संतान नहीं होती है उन्हें संतान की प्राप्ति होती है।
- महिलाएं इस दिन अपने पुत्र के बल, बुद्धि और यश आदि की कामना के लिये व्रत रखती है।
- ऐसी मान्यता है कि तिल चौथ का व्रत रखने से सभी समस्यायों से निजात मिल जाता है और जीवन मंगलमय हो जाता है।
तिल चौथ क्या है निष्कर्ष:
दोस्तों, आज हमने इस आर्टिकल में तिल चौथ क्या है, तिल चौथ व्रत के महत्व, विधि इत्यादि के बारे में समस्त जानकारी आपके समक्ष रखी। हम आशा करते है कि आपको यह आर्टिकल बहुत पसंद आई होगी। अगर आपको यह जानकारी अच्छी लगी तो कृपया इसे जरूर शेयर करे और अगर आपके मन में इस आर्टिकल से संबंधित कोई सवाल या विचार है तो हमे नीचे comment करके आसानी से बता सकते है।
FAQs:
प्रश्न: तिल चौथ क्या होता है?
उत्तर: तिल चौथ एक व्रत है जिसे सनातन धर्म के अनुसार सकट चतुर्थी के नाम से भी जाना जाता है जो हर साल माघ के महीने में आता है।
प्रश्न: तिल चौथ का व्रत क्यों मनाया जाता है?
उत्तर: इस दिन महिलाएं संतान प्राप्ति के लिये चौथ माता का व्रत रखती है।
प्रश्न: तिल चौथ का महत्व क्या है?
उत्तर: ऐसी मान्यता है कि तिल चौथ का व्रत रखने से सभी समस्यायों से निजात मिल जाता है और जीवन मंगलमय हो जाता है।